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{{KKRachna
|रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
}}
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किसको फुर्सत है दुनिया में कौन बुलाने आएगा
बात -बात पे रुठोगे तो कौन मनाने आएगा
जब भी मैं आवाज़ हूँ देता आनाकानी करते हो
मेरे बाद बता दो तुमको कौन बुलाने आएगा
गंगा जी माँ कहते सब जल भी गंदा करते हैं
पाप धुलेंगे कैसे यारो कौन नहाने आएगा
इस बस्ती को छोड़ चला मै तू जाने और तेरा काम
सांकल तेरे दरवाज़े की कौन बजाने आएगा
इन अंधियारी गलियों को इक मैं ही रौशन करता था
दिन ढलते ही दीपक "आज़र" कौन जलाने आएगा </poem>
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|रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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किसको फुर्सत है दुनिया में कौन बुलाने आएगा
बात -बात पे रुठोगे तो कौन मनाने आएगा
जब भी मैं आवाज़ हूँ देता आनाकानी करते हो
मेरे बाद बता दो तुमको कौन बुलाने आएगा
गंगा जी माँ कहते सब जल भी गंदा करते हैं
पाप धुलेंगे कैसे यारो कौन नहाने आएगा
इस बस्ती को छोड़ चला मै तू जाने और तेरा काम
सांकल तेरे दरवाज़े की कौन बजाने आएगा
इन अंधियारी गलियों को इक मैं ही रौशन करता था
दिन ढलते ही दीपक "आज़र" कौन जलाने आएगा </poem>