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धरती सोना उगले ऐसी अलख जगाना है।
पवन बेगी बहेगी सुरभित हर द्रुमदल लहरायेंग।
नदिया कल कल नाद करेगी जलधर भी आयेंगे।
कानन उपवन फूल खिलेंगे भँवरे भी गायेंगे।
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पंचायत में हों निर्णय और पंच बनें परमेश्वर।
कोर्टों के क्यू चक्क्र क्यूँ चक्कर काटें क्यों घर से हों बेघर।फसलों का मूल्य मिले घर पर ही शहर जायें क्यूँ लेकर।मेलमेले, हाट, त्योहार मनायें गाँवों में ही रह कर।शिक्षा संकुल ओर और व्यापारिक केन्द्र खुलें बढ़ चढ़ कर।पर मख्यतया मुख्यतया खेती विकास का ध्यान रहे सर्वोपर।
ग्रामोत्थान संस्कृति का अब यज्ञ कराना है।
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