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तलाश / रमा द्विवेदी

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कौन शब्दों में परिभाषित कर सकेगा?<br>
क्या प्रेम गूंगा होता है?<br>
हां येसा ऐसा प्रेम मैंने देखा है एक रोज़रोज<br>चुप-चुप सा , गुमसुम सा<br>
पर हंसता -खिलखिलाता सा<br>
न वह कुछ कहता है?<br>
कि प्रेम को भी खुलकर जी नहीं सकता<br>
जिसकी उसे तलाश है ।<br>
 
१९८७ मे रचित रचना <br>
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