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Kavita Kosh से
बच्चो को भरपेट खिलाती खुद भूखी ही सोती है
माँ तो बस माँ ही होती है .
बच्चों की चंचल अठखेली देख देख खुश होती है
बचपन के हर सुन्दर पल को बना याद संजोती है
माँ तो बस माँ ही होती है .
देख तरक्की बच्चों की वो आस के मोती पोती है
बच्चों की खुशहाली में वो अपना जीवन खोती है
माँ तो बस माँ ही होती है .
बच्चों की बदली नज़रों से नहीं शिकायत होती है
जब-जब झुकता सर होठों पर कोई दुआ ही होती है