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Kavita Kosh से
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न किसी का घर उजडताउजड़ता, न कहीं गुबार होता
सभी हमदमों को ऐ दिल, जो सभी से प्यार होता
मैं मिलन की आरजू को, लहू दे के सींच लेता
ये गुलाब जंदगी जिंदगी का, जो सदा बहार होता
कोई डर के झूठ कहता, न ही सत्य को छिपाता
जो स्वार्थ जंदगी का, न गले का हार होता
मैं खुद अपनी सादगी में, कभी हारता न बाजीबाज़ी
तेरी बात मान लेता, जो मैं होशियार होता
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