भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबक / अतुल कनक

629 bytes added, 00:29, 18 सितम्बर 2011
कष्याँ मुळक्यो जा सकै छै,
अर कष्याँ बाँटी जा सकै छै सौरम।
 
'''राजस्थानी कविता का हिंदी अनुवाद'''
 
स्कूल जाती हुई बेटी के हाथों में
हर दिन सौपता हूँ एक फूल गुलाब का/
सिखाना चाहता हूँ इस तरह
कि तेज काँटों के बीच रहते हुए भी
किस तरह मुस्कुराया जा सकता है
और किस तरह बाँटी जा सकती है सुगंध।
 
'''अनुवाद : स्वयं कवि'''
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
5,484
edits