भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक साँस गंध नदी सी / ओम निश्चल

1,283 bytes added, 12:41, 19 सितम्बर 2011
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम निश्चल |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Poem> कौन भला गूँथ गया ज…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम निश्चल
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<Poem>

कौन भला गूँथ गया
जूड़े में फूल
सिहर उठा माथ हल्दिया.

एक साँस गंध नदी सी
लहरों सा गुनगुना बदन
बात-बात पर हँसना रूठना
हीरे सा पिघल उठे मन
किसने छू लिया भला
रेशमिया तन
सिहर उठा हाथ मेंहदिया.

एक प्यार सोन पिरामिड सा
और बदन परछाईं सा
जल तरंग जैसे बजता है
मन मेरा पुरवाई सा
किससे ये लाज-शरम
कुछ तो बोलो...
सिहर उठा गात क्यों प्रिया?

एक आस गरम धूप सी
बाहों में ऐसे दहके
जूही बगिया में कोई
रह-रह के जैसे महके
किसने झाँका चुपके
घूँघट की ओट
दमक उठा प्रात सीपिया.
<Poem>
70
edits