भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
'''अपनी बात ''' / वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’
स्व. दुष्यन्त कुमार जी के ग़ज़ल संग्रह ‘साये में धूप’ से प्रभावित होकर मैंने 1991 से ग़ज़लें कहना शुरू किया और आज तक कह रहा हूँ । इस संग्रह में 1991 से 1997 तक मेरे द्वारा कही गई ग़ज़लों में से वे ग़ज़लें हैं जो मुझे कुछ ठीक-ठाक लगती हैं और लगता है कि इन्हें दूसरों को भी पढ़वाया जा सकता है ।
'''प्रभु प्रताप कछु दुर्लभ नाहीं'''