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अफ़्सोस है / अकबर इलाहाबादी

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|रचनाकार=अकबर इलाहाबादीडा मीरा रामनिवास
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<poem>अफ़्सोस है गुल्शन ख़िज़ाँ लूट रही हैशाख़े-गुले-तर सूख के अब टूट रही हैसुखद अहसास
इस क़ौम से वह आदते-देरीनये-ताअतबिलकुल नहीं छूटी है मगर छूट रही है</poem>अपनी यादें, अपनी बातें ले कर जाना भूल गया, जाने वाला जल्दी में था, मिल कर जाना भूल गया, मुड़, मुड़ कर देखा था उसने जाते हुए रास्ते में, जैसे कहना था कुछ, जो वो कहना भूल गया lRawal Kishore