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Kavita Kosh से
जान भी, जिस्म से, ऐ जाने जिगर, जाने दे
रूठे दिलबर दो को यक़ीनन ही मना लेगा 'रक़ीब'
फूटी तक़दीर तो एक बार संवर जाने दे
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