भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKPoemOfTheWeek

205 bytes added, 05:55, 15 अक्टूबर 2011
<td rowspan=2>
<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : अच्‍छे बच्‍चे ख़ूबसूरत दिन ('''रचनाकार:''' [[नरेश सक्सेनास्वप्निल श्रीवास्तव]])</div>
</td>
</tr>
</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
अच्‍छे बच्‍चे
कुछ बच्चे बहुत अच्छे होते हैंवे गेंद और ग़ुब्बारे नहीं मांगतेमिठाई नहीं मांगते ज़िद नहीं करतेऔर मचलते तो हैं ही नहींउसने खोल दी खिड़कियाँ
बड़ों का कहना मानते हैंवे छोटों का भी कहना मानते हैंइतने अच्छे होते हैंढेर-सी ताज़ा हवाएँ दौड़ कर आ गईं घर में
इतने अच्छे बच्चों की तलाश ढेर-सी धूप आ गई और घर के कोने-अतरे में रहते हैं हमबिखरने लगी  टंगे हुए कलैंडर में उसने घेर दी आज की तारीख़ तस्वीरों पर लगी धूल को साफ़ किया रैक पर सजा कर रख दीं क़िताबें  खिड़की के बाहर हिलती हुई टहनी को देखा और मिलते हीकहाउन्हें ले आते हैं 'तुम भी आओ मेरे घरमें'अक्सरतीस रुपये महीने और खाने पर। टहनी पर बैठी हुई बुलबुल उल्लास में फ़ुदकती रही  पहली बार वह अपने घर में देख रहा था इतना ख़ूबसूरत दिन ।
</pre></center></div>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
3,286
edits