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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्रप्रकाश देवल |संग्रह= }} {{KKCatMoolRajasth...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=चंद्रप्रकाश देवल
|संग्रह=
}}
{{KKCatMoolRajasthani}}
{{KKCatKavita}}<poem>कहाँ - कहाँ बचोगे
प्यार की चुप्पी में उसका निवास है
संताप के बाद अगला घर उसीका है।
दुख के चारों और कवच बनी
सुख की परिखा से थोड़ा आगे
उसी का साम्राज्य है
शायद यही सोच कर
तुम बार - बार डर कर
लौटते हो सुखों की ओर।
दुनिया के सारे रास्ते खमदार हैं
और जीवन हमेशा ऊबड़ - खाबड़
हाँ, एक सीधी - सच्ची सपाट राह
हरदम वहां पहुंचती है
जहां जाने से हरकोई डरता है
और उम्र पर्यन्त भटकता है।
उम्र की धूपछांह में झुलसते - संभलते
तुम जिधर बढ़ते हो
हर बार आगे वह मिले ही
नहीं कहा जा सकता।
उधर से लौटते
थके पैरों की नींद में भी आ सकती है वह
सपने की तरह!
मृत्यु से मत भागो!
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=चंद्रप्रकाश देवल
|संग्रह=
}}
{{KKCatMoolRajasthani}}
{{KKCatKavita}}<poem>कहाँ - कहाँ बचोगे
प्यार की चुप्पी में उसका निवास है
संताप के बाद अगला घर उसीका है।
दुख के चारों और कवच बनी
सुख की परिखा से थोड़ा आगे
उसी का साम्राज्य है
शायद यही सोच कर
तुम बार - बार डर कर
लौटते हो सुखों की ओर।
दुनिया के सारे रास्ते खमदार हैं
और जीवन हमेशा ऊबड़ - खाबड़
हाँ, एक सीधी - सच्ची सपाट राह
हरदम वहां पहुंचती है
जहां जाने से हरकोई डरता है
और उम्र पर्यन्त भटकता है।
उम्र की धूपछांह में झुलसते - संभलते
तुम जिधर बढ़ते हो
हर बार आगे वह मिले ही
नहीं कहा जा सकता।
उधर से लौटते
थके पैरों की नींद में भी आ सकती है वह
सपने की तरह!
मृत्यु से मत भागो!
</poem>