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{{KKRachna
|रचनाकार=मनु भारद्वाज
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<Poem>
उलझता जाए है दामन किसी का
ख़ुदारा देखिएगा फन किसी का
पुकारे है मुझे दरपन किसी का
किसी के घर पे खुशियों की फिजा फिज़ा है
सुलगता है कहीं गुलशन किसी का
लबों पे आह थी, आँखों में आँसूं
'मनु' गुज़रा है यूँ सावन किसी का</poem>
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