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कुबूल है मुझे गुल मिले या खार मिले
तुम्हारा क़ुर्ब मिले या के इंतज़ार मिले

खुदा करे कि खिज़ा तुझसे दूर दूर रहे
क़दम-क़दम पे तुझे मौसम-ए-बहार मिले

तेरा सितम भी मुझे है अज़ीज़ तेरी क़सम
मै बार बार उठा लूँ जो बार बार मिले

जो राह-ए-इश्क़ में देते थे हौसला हमको
मिले जो आज तो वो हाये अश्कबार मिले

आ मिटा दूँ मै तेरे सरे गिले रूठे सनम
गले से तुझको लगा लूँ जो एक बार मिले

ला झुका दूँ मै सितारों को तेरे क़दमों पे
अगर निगाह से तेरी ये इख्तियार मिले

करीब है जो मसीहा तो 'मनु' डर कैसा
अजल का खौफ नहीं चाहे बार-बार मिले</poem>
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