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21:37, 18 नवम्बर 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मनु भारद्वाज
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<Poem>
मरमरी बाजुओं को फैलाकर
मेरे सीने से लग जा शरमाकर
तुझको बदनाम न कर दे दुनिया
मेरी ख़ातिर न इतना सोचा कर
वो मजारें हैं इश्क वालों की
चल मेरे साथ वहाँ सजदा कर
पास आकर तेरे तड़प ही उठा
दिल को लाया था ख़ूब समझकर
उम्र भर बनके रहेगा मेरा
तू न रूठेगा कभी वादा कर
इश्क की आबरू बचा ले 'मनु'
हुस्न को भी न कभी रुसवा कर </poem>