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|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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तुमने

प्रतिमा का सिर काट लिया,

पर लोगों ने उसे सिर झुकाना नहीं छोड़ा है।

तुमने मूर्ति को नहीं तोड़ा,

लोगों की आस्‍था को नहीं तोड़ा है।

और आस्‍था ने

बहुत बार

कटे सिर को कटे धर से जोड़ा है।
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