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आज यूँ मौज-दर-मौज ग़म थम गया
इस तरह गमज़दों ग़मज़दों को करार क़रार आ गयाजैसे खुशबूखु़शबू-ए-जुल्फजु़ल्फ़-ए-बहार आ गयीजैसे पैगामपैग़ाम-ए-दीदार-ए-यार आ गया
जिसकी देदोदीदो-तलब वहम समझे थे हमरू-ब-रू फ़िर फिर से सरे-रहगुज़र आ गएसुबह-ए-फर्दा फ़र्दा को फ़िर फिर दिल तरसने लगाउम्र-रफ्त: रफ़्तः तेरा ऐतबार आ गया
रुत बदलने लगी रेंजरंजे-दिल देखना
रंगे-गुलशन से अब हाल खुलता नहीं
दिल सुलगने लगे, दाग़ जलने लगे
सरफरोशी के अंदाज़ बदलते गए
दावत-ए-क़त्ल पर मक्तालमक़्ताल-ए-शहर मेंडालकर कोई गर्दन में तौक़ <ref>फांसी का फन्दा </ref> आ गयालादकर कोई काँधे पे दार <ref>फांसी का तख़्त </ref> आ गया
'फ़ैज़' क्या जानिए यार किस आस पर
मुन्तज़िर हैं की कि लाएगा कोई ख़बर
मयकशों पर हुआ मुहतसिब मेहरबान