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{{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=भारत भूषण }}{{KKCatGeet}}<poem>आज पहली बात पहली रात साथी चाँदनी ओढ़े धरा सोई हुई हैश्याम अलकों में किरण खोई हुई हैप्यार से भीगा प्रकृति का गात साथीआज पहली बात पहली रात साथी मौन सर में कंज की आँखें मुंदी हैंगोद में प्रिय भृंग हैं बाहें बँधी हैंदूर है सूरज, सुदूर प्रभात साथीआज पहली बात पहली रात साथी आज तुम भी लाज के बंधन मिटाओखुद किसी के हो चलो अपना बनाओहै यही जीवन, नहीं अपघात साथीआज पहली बात पहली रात साथी </poem>lobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=भारत भूषण
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