भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
अनाथ मन
बैठ गई है पगडंडी पर
तब-तब मेरे वर्तमान को
सिद्ध कर गए हो—
कोरे इतिहास नहीं हो
</poem>