भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
[[Special:Contributions/Virendra R. Sharma|Virendra R. Sharma]] ([[User talk:Virendra R. Sharma|Talk]]) के संपादनोंको हटाकर [[User:Aditi kailash|Aditi kailash]] के आखिरी अवतरण को पूर्
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>
अ³कड ~³कड धुb ‘ें ध³कडअक्कड़ मक्कड़ , दानिा ि‘ुरख दानिों ’³कडधूल में धक्कड़,दोनों मूरख,दोनों अक्खड़, हाट स िbौटसे लौटे,ि ठाट स िbौटठाठ से लौटे,ि एक साथ एक हाट स िbौट,ि बाट से लौटे.
~ात ~ात ‘ें ~ात बात-बात में बात ठन गईगयी, ~ाँह उठी बांह उठीं और ‘ूँछ ितन गई, मूछें तन गयीं.इसन िउसकी इसने उसकी गर्दन भीचीभींची, उसन िइसकी उसने इसकी दाढी खींची.अब वह जीता, अब यह जीता;दोनों का बढ चला फ़जीता;लोग तमाशाई जो ठहरे सबके खिले हुए थे चेहरे !
अ~ वह जीता, अ~ वह जीतामगर एक कोई था फक्कड़, दानिों मन का चb डिा ’जीता, राजा कर्रा - कक्कड़;bागि त‘ाशाई जा िठहर,ि बढा भीड़ को चीर-चार करस~क िेखb िहुए थ िचहिर,ि बोला ‘ठहरो’ गला फाड़ कर.
‘गर उन‘ें था काईि ’क्कडअक्कड़ मक्कड़ , ‘न का राजा कर्राक³कडधूल में धक्कड़, ~डी भीड का िचीर-चार करदोनों मूरख, ~ाbिा ठहरों गbा ’ाड करदोनों अक्खड़, गर्जन गूंजी, रुकना पड़ा,सही बात पर झुकना पड़ा !
उसन िकहा उसने कहा सधी ~ाणी ‘ेंवाणी में, डु~ा िचुल्‌bुभर ािनी ‘ें, डूबो चुल्लू भर पानी में;ताकत bडन ि‘ें ‘त खाआि,ि लड़ने में मत खोऒचbा िभाई चारें का ि~ाआि ि। चलो भाई चारे को बोऒ!
खाbी स~ ‘ैदान डिा खाली सब मैदान पड़ा है, आ’त आफ़त का शैतान खडा खड़ा है, ताकत एसि िही ‘त खाआिऐसे ही मत खोऒ,ि चbा िभाई चार िका ि~ाआि ि।  सुनी ‘ुर्खो न िज~ ¶ह ~ाणी, दानिा िजैस िािनी - ािनी, bडना छाडिा अbग हट गए, bागि शर्‘ स िगb िछट गए,  स~का िनाहक bडना अखरा, ताकत भूb गई त~ नखरा, गb िे‘b ित~ अ³कड-~³कड, खत्‘ हा िग¶ा धुb ‘ें ध³कड,  अ³कड ~³कड धुb ‘ें ध³कड, दानिा ि‘ुरख दानिों ’³कड ।चलो भाई चारे को बोऒ.
</poem>