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|रचनाकार=मख़्मूर सईदी
}}
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गाँव की फ़िज़ाओं में, डोलती हवाओं में
नग़्मगी मचलती है, मस्तियाँ सनकती हैं
इक शरीर आहट पर, पुरसुकून पनघट पर
गागरें छलकती हैं, चूड़ियाँ छनकती हैं
सिलसिले रक़ाबत के दूर तक पहुँचते हैं
ज़ंगख़ुर्दा तलवारें देर तक खनकती हैं ।
</poem>
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|रचनाकार=मख़्मूर सईदी
}}
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गाँव की फ़िज़ाओं में, डोलती हवाओं में
नग़्मगी मचलती है, मस्तियाँ सनकती हैं
इक शरीर आहट पर, पुरसुकून पनघट पर
गागरें छलकती हैं, चूड़ियाँ छनकती हैं
सिलसिले रक़ाबत के दूर तक पहुँचते हैं
ज़ंगख़ुर्दा तलवारें देर तक खनकती हैं ।
</poem>