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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मख़्मूर सईदी }} {{KKCatNazm}} <poem> अजनबी चेहरो...' के साथ नया पन्ना बनाया
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|रचनाकार=मख़्मूर सईदी
}}
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अजनबी चेहरों के फैले हुए इस जंगल में
दौड़ते भागते लम्हों के दरीचे से कभी
इत्तेफ़ाक़न तेरी मानूस शबाहत की झलक
पर्द-ए-चश्मे-तख़य्युल प’उभर कर ऐ दोस्त
डूब जाती है उसी पल, उसी साअत, जैसे
तेज़रौ रेल की खिड़की से, ज़रा दूरी पर
किसी सेहरा की झुलसती हुई वीरानी में
नागहाँ मंज़रे-रंगी कोई दम भर के लिए
इक मुसाफ़िर को नज़र आए और ओझल हो जाए
</poem>
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अजनबी चेहरों के फैले हुए इस जंगल में
दौड़ते भागते लम्हों के दरीचे से कभी
इत्तेफ़ाक़न तेरी मानूस शबाहत की झलक
पर्द-ए-चश्मे-तख़य्युल प’उभर कर ऐ दोस्त
डूब जाती है उसी पल, उसी साअत, जैसे
तेज़रौ रेल की खिड़की से, ज़रा दूरी पर
किसी सेहरा की झुलसती हुई वीरानी में
नागहाँ मंज़रे-रंगी कोई दम भर के लिए
इक मुसाफ़िर को नज़र आए और ओझल हो जाए
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