भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं जीवन हूँ / निदा फ़ाज़ली

1,204 bytes added, 12:56, 17 जनवरी 2012
uploaded by Prabhat
वो जो

फटे-पुराने जूते गाँठ रहा है

वो भी मैं हूँ |


वो जो घर-घर

धूप की चाँदी बाँट रहा है

वो भी मैं हूँ |


वो जो

उड़ते परों से अम्बर पात रहा है

वो भी मैं हूँ |


वो जो

हरी-भरी आँखों को काट रहा है

वो भी मैं हूँ |


सूरज-चाँद

निगाहें मेरी

साल-महीने राहें मेरी |


कल भी मुझमे

आज भी मुझमे

चारों ओर दिशाएँ मेरी |



अपने-अपने

आकारों में

जो भी चाहे भर ले मुझको |


जिनमे जितना समा सकूँ मैं

उतना

अपना कर ले मुझको |


हर चेहरा है मेरा चेहरा

बेचेहरा इक दर्पण हूँ मैं

मुट्ठी हूँ मैं

जीवन हूँ मैं |
19
edits