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Kavita Kosh से
चाह नहीं परवाह नहीं ए ! उद्धव ज्ञान नहीं मन भावे,
श्याम सलौना से नैन लगे अब क्यंू क्यूं गुन और हमें समझावे।
प्रीत लगी उस प्रितम से विपरीत कलेजे क्यूं हूंक जगावे,
सरगुण कृष्ण रसीला पिया बिन चैन कहां जो तू ज्ञान सधावे।