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'रात सुनसान थी, बोझल थी फज़ा की साँसें <br /> रूह पे छाये थ...' के साथ नया पन्ना बनाया
रात सुनसान थी, बोझल थी फज़ा की साँसें <br />
रूह पे छाये थे बेनाम ग़मों के साए <br />
दिल को ये ज़िद थी कि तू आए तसल्ली देने <br />
मेरी कोशिश थी कि कमबख्त को नींद आ जाए<br />

देर तक आंखों में चुभती रही तारों कि चमक <br />
देर तक ज़हन सुलगता रहा तन्हाई में <br />
अपने ठुकराए हुए दोस्त की पुरसिश के लिए <br />
तू न आई मगर इस रात की पहनाई में <br />

यूँ अचानक तेरी आवाज़ कहीं से आई <br />
जैसे परबत का जिगर चीर के झरना फूटे <br />
या ज़मीनों कि मुहब्बत में तड़प कर नागाह <br />
आसमानों से कोई शोख़ सितारा टूटे <br />

शहद सा घुल गया तल्खा़बः-ए-तन्हाई में <br />
रंग सा फैल गया दिल के सियहखा़ने में <br />
देर तक यूँ तेरी मस्ताना सदायें गूंजीं <br />
जिस तरह फूल चटखने लगें वीराने में <br />

तू बहुत दूर किसी अंजुमन-ए-नाज़ में थी <br />
फिर भी महसूस किया मैं ने कि तू आई है <br />
और नग्मों में छुपा कर मेरे खोये हुए ख्वाब <br />
मेरी रूठी हुई नींदों को मना लाई है <br />

रात की सतह पे उभरे तेरे चेहरे के नुकूश <br />
वही चुपचाप सी आँखें वही सादा सी नज़र <br />
वही ढलका हुआ आँचल वही रफ़्तार का ख़म <br />
वही रह रह के लचकता हुआ नाज़ुक पैकर<br />

तू मेरे पास न थी फिर भी सहर होने तक <br />
तेरा हर साँस मेरे जिस्म को छू कर गुज़रा <br />
क़तरा क़तरा तेरे दीदार की शबनम टपकी <br />
लम्हा लम्हा तेरी ख़ुशबू से मुअत्तर गुज़रा <br />

अब यही है तुझे मंज़ूर तो ऐ जान-ए-बहार <br />
मैं तेरी राह न देखूँगा सियाह रातों में <br />
ढूंढ लेंगी मेरी तरसी हुई नज़रें तुझ को <br />
नग़्मा-ओ-शेर की उभरी हुई बरसातों में <br />

अब तेरा प्यार सताएगा तो मेरी हस्ती <br />
तेरी मस्ती भरी आवाज़ में ढल जायेगी <br />
और ये रूह जो तेरे लिए बेचैन सी है <br />
गीत बन कर तेरे होठों पे मचल जायेगी <br />

तेरे नग्मात तेरे हुस्न की ठंडक लेकर <br />
मेरे तपते हुए माहौल में आ जायेंगे <br />
चाँद घड़ियों के लिए हो कि हमेशा के लिए <br />
मेरी जागी हुई रातों को सुला जायेंगे <br />
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