भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आजु नंद के द्वारैं भीर / सूरदास

142 bytes removed, 13:29, 28 सितम्बर 2007
आजु नंद के द्वारैं भीर
सूरदास श्रीकृष्णबाल-माधुरी

राग धनाश्री
---------
आजु नंद के द्वारैं भीर ।<br>
भावार्थ :-- आज नन्दजी नन्द जी के द्वारपर द्वार पर भीड़ हो रही है । कोई आ रहा है, कोई बिदा होकर जा रहा है और कोई भवन के समीप खड़ा है । कोई गोपिका केसरका केसर का तिलक लगा रही है, कोई शरीरमें शरीर में कंचुकी पहिन रही है । (श्रीनन्दजी) किसी को गोदान दे रहे हैं, किसी को वस्त्र पहिना रहे हैं, किसी को आभूषण और पीताम्बर देते हैं, किसी को मणियाँ और हीरे देते हैं, किसीको किसी को पुष्पोंकी माला पहिनाते हैं, किसीको किसी को (स्वयं) जलमें जल में घिसकर चन्दन लगाते हैं, किसी के मस्तक पर दूर्वा और गोरोचन डालते हैं और किसी को धैर्य दिलाकर (स्थिर होकर कार्य करने के लिये)समझाते हैं । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि ये श्यामसुन्दर के प्रेमी (गोप-गोपी) धन्य हैं और पवित्र देहधारिणी माता यशोदा धन्य हैं ।