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Kavita Kosh से
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
ईमान-एओ-कुफ़्र<ref>धर्म-अधर्म </ref> और न दुनिया व दीं <ref>दुनिया और धर्म </ref> रहे
ऐ इश्क़ !शादबाश <ref> प्रसन्न रहो </ref> कि तनहा हमीं रहे
क़िस्मत में कू-ए-यार <ref>प्रेयसी की गली </ref> की दो ग़ज़ ज़मीं रहे
दर्द-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ <ref>विरह वेदना </ref> के ये सख़्त - मरहले<ref>समस्याएँ </ref>
हैरां<ref>विस्मित </ref> हूँ मैं कि फिर भी तुम इतने हसीं रहे