भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशीला पुरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> छो...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुशीला पुरी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
छोटू
( बाल -दिवस पर विशेष )
कोलबेल दबाते में
हथेली का खुरदुरापन चुभता है
कई कई प्रश्नों के साथ,
छोटू, जो घर घर से उठाता है कूड़ा
टुकुर टुकुर देखता है
घरों से निकलते स्कूल जाते बच्चे
भूकुर भूकुर ढ़ेबरी सा जलता है छोटू,
छूता है अपनी खुरदुरी हथेलियाँ
जो छूना चाहती हैं किताबें
और उनमें छपे अक्षरों की दुनियाँ,
ऐसी दुनियाँ
जहाँ मिल सके बराबरी
जहाँ दया में मिले
सीले बिस्कुटों की नमी न हो
कूड़ा उठाते हुये छोटू
छूना चाहता है
एक नया सूरज...!
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=सुशीला पुरी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
छोटू
( बाल -दिवस पर विशेष )
कोलबेल दबाते में
हथेली का खुरदुरापन चुभता है
कई कई प्रश्नों के साथ,
छोटू, जो घर घर से उठाता है कूड़ा
टुकुर टुकुर देखता है
घरों से निकलते स्कूल जाते बच्चे
भूकुर भूकुर ढ़ेबरी सा जलता है छोटू,
छूता है अपनी खुरदुरी हथेलियाँ
जो छूना चाहती हैं किताबें
और उनमें छपे अक्षरों की दुनियाँ,
ऐसी दुनियाँ
जहाँ मिल सके बराबरी
जहाँ दया में मिले
सीले बिस्कुटों की नमी न हो
कूड़ा उठाते हुये छोटू
छूना चाहता है
एक नया सूरज...!
</poem>