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Kavita Kosh से
सुकूँ से आशना अब तक दिल ए इनसाँ नहीं है
कहूँ क्यूँ कर कि अहसास ए ग़म ए दौराँ, नहीं है
भरोसा अपने दस्त ओ पा पे है मुझको अज़ल से
वो मुश्किल कौन सी है मेरी जो आसाँ नहीं है
रबाब ए गुल से नग़में फूट निकले हैं मगर अब
परस्तार ए रिहाई क़ैदी ए ज़िन्दां नहीं है
ख़्याल ए साहिल ए मक़्सूद है दिल में अभी तो
मिरी कश्ती सिपुर्द ए मौज ए तूफाँ नहीं है
हूँ उस से दूर तो भी है वफ़ा का पास दिल में
उसे मैं भूल जाऊँ ये मिरा ईमाँ नहीं है
कहाँ तक आँख से आँसू बहाऊँ मैं लहू के
कहो इक बार फिर इस दर्द का दरमाँ नहीं है
रवि इस ज़िन्दगी में हो मुझे भी चैन हासिल
सिवा इस के मिरे दिल में कोई अरमाँ नहीं है
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