भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शिव / शिवदीन राम जोशी

4 bytes added, 03:57, 26 फ़रवरी 2012
मृगछाल बाघम्बर आसन की,
छवि छाज रही अहो अपरंपारा |
बाज रही डमरू कर में,
व आवाज भली जग जानत सारा |
शिवदीन सदा शिव सहायक है,
वर दायक दानी वे दाता हमारा |
<poem>
514
edits