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'''[[तुफैल तुफ़ैल चतुर्वेदी]]'''
==परिचय==
तुफैल साहब का नाम शाइरी की दुनिया में बहुत जाना पहचाना नाम है.1961 में जन्में तुफैल का वास्तविक नाम विनय कृष्ण है ......... विनय से वे 'तुफैल' कब और कैसे बन गए, उन्हें खुद भी याद नहीं .......
तुफैल साहब की शख्सियत एकदम अलग और एकदम बिन्दास है..... अपनी पसन्दगी या नापसन्दगी को वे कभी नहीं छुपाते.............अगर कोई चीज उन्हें पसन्द नहीं , तो खुले आम उसे जाहिर भी कर देते है. यही बात वे गजलों पर भी लागू करते है, अगर उन्हें कोई गजल या शाइर पसन्द नहीं है तो उसे खुल के वे नकारते हैं..........यह अलग बात है कि वे जब ऐसा करते हैं तो ऐसा करने के पीछे वे कारण भी गिनाते हैं ,जिन्हें काटना आसान नहीं होता. आज के समय में कई बडे नामचीन शाइरों से तुफैल का ’डिफरेन्स' इसी वजह से है. कारण साफ है तुफैल को जो कुछ कहना है..........बिना लाग-लपेट के कह ही देते है, अंजाम बला से ........!
तुफैल ’93 में काशीपुर ,नैनीताल होते हुए नोएडा आ गए, और फिर यहीं के हो कर रह गए. विवाह किया और अब तो साढे-तीन साल के बच्चे के पिता भी हैं...... ! शुरुआत में ’रसरंग’ नाम से संकलन निकाला, रासरंग बाद में ’लफ्ज’ में तब्दील हो गयी जो अभी तक मुसलसल प्रकाशित हो रही है. वैसे तो तुफैल साहब ने शाइरी में किसी को उस्ताद नही बनाया मगर कृष्ण बिहारी ’नूर’ की कुर्बतें उन्हें जरूर मिलीं. शायरी का शौक और साथ में अध्यात्म.........यह भी एक साथ दौर चला, 12 वर्षो तक साधू के वेश में वे मंचों से शेर पढते रहे. बहरहाल आज के [[तुफैल चतर्वेदीतुफ़ैल चतुर्वेदी]] से आप मिलें तो लगेगा कि वे बिगडैल किस्त के व्यक्ति है....... गलत बात पर भड़क जाते है, छोटो से स्नेह भी रखते है औरउन्हें मौके बेमौके लताड़ भी लगाते रहते है. फक्कडी स्वभाव के हैं सो खुद को ’बाजार’ से दूर ही रखा है, ’मार्केटिंग' के सारे गुर जानने के बाद भी ’मार्केटिंग से बचते हैं........फिलहाल ’लफ्ज’ को चलाने की जिद में अपना प्लाट बेच चुके है........कहते है कि अच्छी शायरी को पाठकों सामने लाना मेरा ’ध्येय है,जो मैं किसी भी कीमत पर करूंगा.....!
'''[http://singhsdm.blogspot.in/2011/08/blog-post.html ब्लाग नजरिया से साभार]'''