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Kavita Kosh से
बाप पूत में बैर
जिनको दूध पिलाया वो ही
काट रहe रहें हैं पैर
आखिर ऐसे ठंडे रिश्ते
कब तक ढोयें हम
बोटी बोटी नुची देह की
बची न तन पर खाल
स्वाद दूसरो दूसरों को देने में
मुर्गा हुआ हलाल
नैन भिगोयें हम
मुँह पर खुशहाली की बातें
जीना किये हराम
आसमान के नीचे आखिर
कब तक सोयें हम।
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