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Kavita Kosh से
बनकर बंजारे
फिरते-रहते
हम गली-गली !
जलती भट्ठी
मोड़ें वैसा
धरे निहाई
हम अली-बली!
नए-नए-
अपनी फूटी
खा भी लेते
हम भुनी-जली!
राहगीर मिल
समय सहारा
जो सुन लेते
हम बुरी-भली!
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