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{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
<poem>
हुआ प्रवासी
गंगावासी
अब
कितना घर का, गाँव का
कॉलेज टॉप
किया ज्यों ही
वह गया गाँव से अमरीका
जाते ही तब
छूट गया सब-
आँचल, राखी, रोली-टीका
बिना आसरे
घर
बूढा बापू
कभी धूप का, छाँव का !
अंतिम सांस
भरी बापू ने
क्रिया-करम को पैसा आया
घर-घर चर्चा
हुई गाँव में -
'क्या खोया, क्या किसने पाया'
समय जुआरी
बैठा है
फड़ पर
सब कुछ उसके दाँव का !
दाम कमाया
नाम कमाया
बड़े दिनों से गाँव न आया
भीतर-बाहर
खोज रही माँ
अपनों में अपनों की छाया
क्या दूर बहुत
अब
हुआ रास्ता
गावों से भोगांव का?
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
<poem>
हुआ प्रवासी
गंगावासी
अब
कितना घर का, गाँव का
कॉलेज टॉप
किया ज्यों ही
वह गया गाँव से अमरीका
जाते ही तब
छूट गया सब-
आँचल, राखी, रोली-टीका
बिना आसरे
घर
बूढा बापू
कभी धूप का, छाँव का !
अंतिम सांस
भरी बापू ने
क्रिया-करम को पैसा आया
घर-घर चर्चा
हुई गाँव में -
'क्या खोया, क्या किसने पाया'
समय जुआरी
बैठा है
फड़ पर
सब कुछ उसके दाँव का !
दाम कमाया
नाम कमाया
बड़े दिनों से गाँव न आया
भीतर-बाहर
खोज रही माँ
अपनों में अपनों की छाया
क्या दूर बहुत
अब
हुआ रास्ता
गावों से भोगांव का?
</poem>