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भावार्थ :-- बलराम और श्यामसुन्दर दोनों भाई ब्यालू कर रहे हैं । माता रोहिणीऔर रोहिणी और मैया यशोदा प्रेमपूर्वक दोनों पुत्रको पुत्र को भोजन करा रही हैं । रत्नजटित सोनेकेथालमें सोने के थाल में दोनों भाई एक साथ बैठकर भोजन कर रहे हैं । दोनों आलस्यपूर्वक हाथोंसेग्रास हाथों से ग्रास उठाते हैं, नेत्रों में अत्यन्त गाढ़ी निद्रा छा गयी है । दोनों माताएँपुत्रों माताएँ पुत्रों के अलसाये मुख की शोभा देख रही हैं और उसपर उस पर अपना तन-मन न्योछावर किये देती हैं । सूरदास के स्वामी बार-बार जम्हाई ले रहे हैं; भला, कोई कवि इस छटाकी छटा की उपमा किसके साथ देगा ।