भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसकी ज़िद-2 / पवन करण

54 bytes added, 07:15, 23 अप्रैल 2012
<Poem>
हैन्ड-बैग को एक तरफ़ रखते हुए वह बोली —
मैं इस बारिश को अपने बैग में भर लेना चाहती हूँमैंने कहा — बिल्कुल , तुम्हें किसने रोका है? उसने कहा — नहीँ , तुम्हारे साथ भीगते हुएइस बैग में बारिश को भरना चाहती हूँ मैं
मैंने देखा कि बाहर धूप खिली हुई थीमुझे उस पर हँसी आई , लेकिन वह नहीं मानीऔर मुझे खींचते हुए बाहर ले आईकुछ देर मैं हँसता रहा उस पर
मगर धीरे-धीरे मुझे महसूस हुआ
जैसे मैं सचमुच बरसात में खड़ा हूँ
और भीग रहा हूँ बारिश में
और वह तो भीगने में मगन थी ही
फिर हम दोनो देर तक बारिश में भीगते
और अपने हाथों से उसे बैग में भरते रहे
फिर हम बैग और ख़ुद को तर-बतर लिए पानी से
लौट आए भीतर, भीतर आकर
सबसे पहले उसने अपने बालों का पानी झटका
और मैंने हथेलियों से अपने गीले मुँह को साफ किया
यह सुन कर किसी को आश्चर्य हो सकता है
कि मैंने इस तरह कितनी ही दफ़ा उसकी जिद पर
उसके बैग में भरा ऐसी बारिश को
जिसका दूर- दूर तक नामोनिशान नहीं था
सिरफ भरा ही नहीं कई दफ़ा तो मैंनेबचाकर उसकी आँख , उसके बैग में भरे पानी कोसूख से जूझते पड़ोसी देश में उलट भी दिया
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits