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{{KKRachna
|रचनाकार=कृष्णबिहारी 'नूर' }}[[Category:ग़ज़ल]]<poem>
नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद ।
वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद ।।
गवाह चाह रहे थे, वो मिरी बेगुनाही का,
जुबाँ से कह न सका कुछ, ‘ख़ुदा गवाह’ के बाद ।