भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
सूरदास ठगि रही ग्वालिनी, मन हरि लियौ अँजोरि ॥<br><br>
भावार्थ :-- (दूसरे दिन) सखाओंके सखाओं के साथ श्यामसुन्दर मक्खन-चोरी करने गये । वहाँ उन्होंने खिड़की की राहसे राह से (झाँककर) देखाकि देखा कि एक भोली गोपी दही मथ रही है । उसनेयह उसने यह देखकर कि मक्खन ऊपर तैरने लगा है, मथानी को मटकेसे मटके से निकालकर रख दिया औरस्वयं और स्वयं (मक्खन रखनेकीरखने की) मटकी माँगकर लेने गयी,श्यामसुन्दर को यहीं अवसर मिल गया। वे सखाओंके सखाओं के साथ सुनसान घरमें घर में घुस गये और सारा दही तथा मक्खन (सबने मिलकर) खा लिया और दहीका दही का मटका खाली छोड़कर हँसते हुए सब घरसे घर से बाहर निकल आये । इतनेमें इतने में वह (गोपी) हाथमें हाथ में मटकी लिये आ गयी, उसने देखा कि) सब गोप-बालक उसके घरसे घर से निकल रहे हैं । हाथमें हाथ में मक्खन लिये, मुखमें मुख में दही लिपटाये श्रीनन्दनन्दन श्री नन्द-नन्दन की छटा तो वह देखती ही रह गयी । (उसने पूछा)- `व्रजके बालकोंको व्रज के बालकों को साथ लेकर (यहाँ) कहाँ आये हो? मुखमें मुख में मक्खन (कैसे)लिपटा रखा है ?' (श्याम बोले)`मेरा यह सखा खेल मेंसे में से उठकर भाग आया और यहाँ इस घरमें घर में आकर छिप गया था ।' (यह कहकर)कन्हाईने कन्हाई ने (पासकेपास के) एक बालकका बालक का हाथ पकड़ लिया और व्रजकी गलियोंमें व्रज की गलियों में चले गये । सूरदासजीकहते सूरदास जी कहते हैं कि वह गोपी तो ठगी-सी (मुग्ध) रह गयी, श्यामसुन्दरने प्रकाशमें श्यामसुन्दर ने प्रकाश में (सबके सामने दिन-दहाड़े) उसके मनको मन को हर लिया ।