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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ }}[[Category:हाइकु]]<poem>61इस जग मेंये बहिनों का प्यारहै उपहार ।62राखी का बन्धबहिनों से सम्बन्धन छूटे कभी ।63सरस मनखुश घर -आँगनआई बहिन ।64अश्रु-धार मेंजो शिकायतें -गिलेधूल -से धुले ।65आज के दिनबहिन है अधीर आया न बीर ।66खिले हैं मनआज नेह का ऐसादौंगड़ा पड़ा ।67 छुआ जो शीशभाई ने बहिन काझरे आशीष ।68मन कुन्दनकुसुमित काननहर बहन ।69गले मिले तोसपना टूट गया आँसू छलके 70भीगी पलकेंछूती गोरा मुखड़ातेरी अलकें 71तुमको देखा मिट गई मन से चिन्ता की रेखा । 72कुछ समझे हम तुम्हें कुछ समझ लेंगे लेने कई जनम73तुमको देखा -मिट गई मन से चिन्ता की रेखा । 74नेह की गलीमन में खिली अबआस की कली75दीपक जले उतरा धरा नभमिलता गले ।76अँधेरा डरा देखकर उजाला छुपता फिरा ।77रोशनी बसी-मन नन्हें शिशु कीबिखरी हँसी78दिया जो जलाथा डरा अँधियाराउजाला खिला79ओस नहाईशरद की जुन्हाईहै सकुचाई ।80नदी का तीरहुआ निर्मल नीर हर ली पीर ।-0-</poem>