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==कार्य==
अरविंद फिल्म पत्रिका माधुरी और सर्वोत्तम (रीडर्स डाईजेस्ट का हिन्दी संस्करण) के प्रथम संपादक थे। पत्रकारिता में उनका प्रवेश दिल्ली प्रेस समूह की पत्रिका सरिता से हुआ। कई वर्ष इसी समूह की अंग्रेज़ी पत्रिका कैरेवान के सहायक संपादक भी रहे। कला, नाटक, और फिल्म समीक्षाओं के अतिरिक्त उनकी अनेक फुटकर कवितायें, लेख व कहानियां प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
==कविता [[सीता निष्कासन / अरविन्द कुमार|सीता निष्कासन]] ==
एक समय जब उन्होंने सीता निष्कासन कविता लिखी थी तो पूरे देश में आग लग गई थी।
सरिता पत्रिका जिस में यह कविता छपी थी देश भर में जलाई गई। भारी विरोध हुआ। सरिता के संपादक विश्वनाथ और [[अरविन्द कुमार]] दसियों दिन तक सरिता दफ्तर से बाहर नहीं निकले। दंगाई बाहर तेजाब लिए खड़े थे।
सीता निष्कासन को लेकर मुकदमे भी हुए और आंदोलन भी। [[अरविन्द कुमार]] ने अपने लिखे पर माफी नहीं मांगी। न अदालत से, न समाज से। उन्होंने कुछ गलत नहीं लिखा था। एक पुरुष अपनी पत्नी पर कितना संदेह कर सकता है, सीता निष्कासन में राम का सीता के प्रति वही संदेह वर्णित था तो इस में गलत क्या था? फिर इस के सूत्र बाल्मीकी रामायण में पहले से मौजूद थे।
जिस दिल्ली प्रेस की पत्रिका सरिता में छपी सीता निष्कासन कविता से वह चर्चा के शिखर पर आए उसी दिल्ली प्रेस में वह बाल श्रमिक रहे।
==काव्यानुवाद==
उनके काव्यानुवाद शेक्सपीयर के जूलियस सीजर का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के लिये इब्राहिम अल्काजी के निर्देशन में हुआ । 1998 मे जूलियस सीज़र का मंचन अरविन्द गौड़ के निर्देशन मे शेक्सपियर नाटक महोत्सव(असम) और पृथ्वी थिएटर महोत्सव, भारत पर्यावास केन्द्र (इंडिया हैबिटेट सेंटर ), में अस्मिता नाट्य संस्था ने किया । अरविंद कुमार ने सिंधु घाटी सभ्यता की पृष्ठभूमि में इसी नाटक का काव्य रूपान्तर भी किया है, जिसका नाम है - विक्रम सैंधव।