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Kavita Kosh से
वह तैर रहा था हवा में, मैं कर रहा था दुआ
लिफ़ाफ़े पर मोहर लगी थी तुम्हारी अंगूठी की
लाख पिघल रही थी ऎसे ऐसे मानो हो वह रूठी-सी
फिर ख़त्म हो गया सब कुछ, पन्ने पड़ गए काले