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{{KKRachna
|रचनाकार=पंकज चतुर्वेदी}}
<poem>
ऑपरेशन के बाद
डॉक्टर कहते हैं :
ऑपरेशन की जगह पर
दर्द बिलकुल न होता हो
तो वह किसी ख़तरनाक
बीमारी का लक्षण है
वह कैंसर भी
हो सकता है
दर्द है इस समाज को
बहुत है
पर उस दुख के
कारणों पर कोई
रैडिकल बहस नहीं है
न उसके पीछे छिपी
ताक़तों को पहचानने
और उनका प्रतिकार करने जितनी
युयुत्सा है
सिर्फ़ फ़ौरी समाधान
और इलाज हैं
और वे ही इतने महँगे
और जटिल हैं
कि उनमें एक भूलभुलैया है
जिसमें चलते हुए हमें लगता है
कि हम वस्तुतः
संघर्ष कर रहे हैं
पर वह संघर्ष नहीं
उसका मिथ होता है
वह इतना निजी होता है
कि कैंसर होता है
</poem>
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|रचनाकार=पंकज चतुर्वेदी}}
<poem>
ऑपरेशन के बाद
डॉक्टर कहते हैं :
ऑपरेशन की जगह पर
दर्द बिलकुल न होता हो
तो वह किसी ख़तरनाक
बीमारी का लक्षण है
वह कैंसर भी
हो सकता है
दर्द है इस समाज को
बहुत है
पर उस दुख के
कारणों पर कोई
रैडिकल बहस नहीं है
न उसके पीछे छिपी
ताक़तों को पहचानने
और उनका प्रतिकार करने जितनी
युयुत्सा है
सिर्फ़ फ़ौरी समाधान
और इलाज हैं
और वे ही इतने महँगे
और जटिल हैं
कि उनमें एक भूलभुलैया है
जिसमें चलते हुए हमें लगता है
कि हम वस्तुतः
संघर्ष कर रहे हैं
पर वह संघर्ष नहीं
उसका मिथ होता है
वह इतना निजी होता है
कि कैंसर होता है
</poem>