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Kavita Kosh से
कोई भीड़ से
अश्रु की उजली उजड़ी सभा के,
अनसुने अध्यक्ष हम
ओ कमल की पंखुरी! बिखरो हमारे पास भी ।
लेखनी को हम बनाएँबनाए
गीतवंती बाँसुरी
ढूंढते परमाणुओं की