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{{KKRachna
|रचनाकार=भूषण
}}
ता दिन अखिल खलभलै खल खलक में,
जा दिन सिवाजी गाजी नेक करखत हैं .
सुनत नगारन अगार तजि अरिन की ,
दागरन भाजत न बार परखत हैं .
छूटे बार बार छूटे बारन ते लाल ,
देखि भूषण सुकवि बरनत हरखत हैं .
क्यों न उत्पात होहिं बैरिन के झुण्डन में,
करे घन उमरि अंगारे बरखत हैं .
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|रचनाकार=भूषण
}}
ता दिन अखिल खलभलै खल खलक में,
जा दिन सिवाजी गाजी नेक करखत हैं .
सुनत नगारन अगार तजि अरिन की ,
दागरन भाजत न बार परखत हैं .
छूटे बार बार छूटे बारन ते लाल ,
देखि भूषण सुकवि बरनत हरखत हैं .
क्यों न उत्पात होहिं बैरिन के झुण्डन में,
करे घन उमरि अंगारे बरखत हैं .