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Kavita Kosh से
नन्दन वन में उगने वाली ,
मेंहदी जिन चरणों कि की लाली ,
बनकर भूपर आई, आली
मैं उन तलवों से चिर परिचित
उषा ले अपनी अरुणाई,
ले कर-किरणों कि की चतुराई ,
जिनमें जावक रचने आई ,
मैं उन चरणों का चिर प्रेमी,