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रुमालों पर / कविता वाचक्नवी

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<poem>
'''रुमालों रूमालों पर'''
हम रुमालों रूमालों पर
कढ़े हैं
प्रीत के अक्षर, 
कब तहाकर
रख चलो
किस जेब में तुम,
कौन जाने?
</poem>
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