भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=‘शुजाअ’ खावर }} {{KKCatGhazal}} <poem> पहुँचा हु...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=‘शुजाअ’ खावर
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>

पहुँचा हुजूर-ए-शाह हर एक रंग का फ़कीर
पहुँचा नहीं जो, था वही पोंह्चा हुआ फ़कीर

वो वक्त का गुलाम तो यह नाम का फ़कीर
क्या बादशाह-ए-वक्त मियाँ और क्या फ़कीर

मंदर्जा जेल लफ्जों के मानी तालाश कर
दर्वेव्श, मस्त, सूफी, कलंदर, गदा, फकीर

हम कुछ नहीं थे शहर में, इसका मलाल है
एक शख्स शहरयार था और एक था फकीर

क्या दौर आ गया है कि रोज़ी की फिक्र में
हाकिम बना हुआ है एक अच्छा भला फकीर

इस कशमकश में कुछ नहीं बन पाओगे ‘शुजाअ’
या शहरयार बन के रहो और या फ़कीर </poem>