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राधा का अनुराग / सूरदास

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स्याम कौं इक तुहीं जान्यौ, दुराचारिनि और ।
 
जैसें घटपूरन न डोलै, अघ भरौ डगडौर ॥
साँची प्रीति जानि मनमोहत, तेरेहिं हाथ बिकाने ॥
 
हम अपराध कियौ कहि तुमसौं, हमहीं कुलटा नारि ।
तुमसौं तुमसौं उनसौं बीच नहीं कछु, तुम दोऊ बर-नारि ॥
धन्य सुहाग भाग है तेरौ, धनि बड़भागी स्याम ।