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काळ / गोरधनसिंह शेखवत

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मिनखपणौ
चोफेर घूमै
 
मौत रै पसवाड़ै
ताकत रा खांधा सूं
पसीनो चुवै
पिछोला गावता खेत
कुदरत रै साम्है
अणचीती बाता सारू
आंसू टळकावै
 
काळ
थारै कोप नै
परै टाळ
उगण दै
सपना साथै भागता
कोडीला हरफां नै
काळ
मत निबळी कर भासा नै
थोड़ी बदळ थारी चाल
 
काळ
मिनख नै मत कर मोता
मत भर तू
खून सूं अै घर
नी कर पड़छीयां नै लाम्बी
मत तोड़
उगतै सुरज री दांत
 
काळ
थारी लगाम नै
थोड़ी थांम
मत उड़ा जूण रा फरचटा
फेरूं सुगन ले
थारै इतियास नै
चेतो राख'र
सांभ ।
 
<poem>
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