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Kavita Kosh से
मिनखपणौ
चोफेर घूमै
मौत रै पसवाड़ै
ताकत रा खांधा सूं
पसीनो चुवै
पिछोला गावता खेत
कुदरत रै साम्है
अणचीती बाता सारू
आंसू टळकावै
काळ
थारै कोप नै
परै टाळ
उगण दै
सपना साथै भागता
कोडीला हरफां नै
काळ
मत निबळी कर भासा नै
थोड़ी बदळ थारी चाल
काळ
मिनख नै मत कर मोता
मत भर तू
खून सूं अै घर
नी कर पड़छीयां नै लाम्बी
मत तोड़
उगतै सुरज री दांत
काळ
थारी लगाम नै
थोड़ी थांम
मत उड़ा जूण रा फरचटा
फेरूं सुगन ले
थारै इतियास नै
चेतो राख'र
सांभ ।
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