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07:01, 8 नवम्बर 2012
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एक दिन जब मै चली जाऊँगीतो घर के किन्हीं कोनो से निकलूँगी फ़ालतू सामान में बहुत समय से बंद पड़ी दराज़ों से निकलूँगी किसी डायरी में लिखे हिसाब सेवो सब बातें अनकही रह गई हैंमेरे किसी पहने हुए कपड़े में कभी अटकी पड़ी रहेगी मेरी ख़ुशबूजो मैं तुमसे और तुम मुझसे कहना चाहती थींजिसे मेरे बच्चे पहन के सो जाएँगेहम भूल गए थेजब मुझे पास बुलाना चाहेंगेआँखे बात करती हैंमै उनके सपनों में आऊँगीउन्हें सहलाने और उनके प्रश्नों का उत्तर देनेशब्द सहम कर खड़े रहते हैं
मै बची रहूँगी शायद कुछ घटनाओं मेंलोगों रात की स्मृतियों में उनके जीवित रहने तकछलनी से छन के निकले थे जो पलगाय की जुगाली वे सब मौन ही थेउन भटकी हुई दिशाओं में गिरती रहूँगी मैं जबवह उन रोटियों को हज़म कर रही होगी तुम्हारी मुस्कराहटो से भरी नज़रों ने जो उसने मेरे हाथ से खाई थीं चाँदनी की चादर बिछाई थीबहुत दिन तक अंजुरी भर-भर पी लिए थे नेत्रों ने लग्न-मन्त्रउन आवारा कुत्तों की उदासी में गुम पड़ी रहूँगी मैं और मेरी सीढ़ी पर पसरे सन्नाटे में वे खोजेंगे मेरी उपस्थिति याद है मुझे
मै मिलूँगी सड़क के अस्फुट स्पर्शो के खज़ाने में अब भी मेरी सुबह जब वह अपनी आहटों को जमा करने के लिए खोलेगी अपनी तिज़ोरी ख़ुशगवार होती हैऔर पेड़ की उन जड़ों में जिन्हें मैंने सींचा था उसके किसी रेशे की मुलायम याद में पड़ी मिलूँगी मै एक लम्बे अरसे तकजानता हूँ ये बेवज़ह नहींकिसी बच्चे की मुस्कराहट में बजूँगी मंदिर की घंटी जैसीतुम अपनी जुदा राह परबस बची रहूँगी मै प्रेम में जो मैंने बाँटा था अपने होने से...दिया था इस सृष्टि को...तब ये सृष्टि देगी मुझे मेरे चुक जाने के बाद बचाए रखेगी मुझे... याद कर रही हो
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